अभी हाल के समय में भारतीय कुश्ती के पहलवानों द्वारा जब कई माँगों के लिए संधर्ष किया जा रहा था तो मुझे उनसे जुड़े एक महत्वपूर्ण विषय पर लिखने का मन किया जिसे हम जानेंगे तो एक लड़की से लेकर महिला पहलवानों के दर्द का एहसास हम कर पाऐगे और बहुत ज़रूरी विषय पर बात को घर में करने के लिए साहस भी जुटा पाऐगे । पिछले वर्ष कुश्ती में भारत को दो उपलब्धियों मिली एक विनेश फोगाट ने दी और दूसरी बंजरग पूनियाँ ने । सर्बिया में हुई विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में विनेश फोगाट व बजरंग पूनिया दोनों कांस्य पदक जीता दर्द के साथ । आईए जाने कैसे शायद बजरंग पूनियाँ का दर्द तो आपको पता ही होगा चलो फिर भी याद दिलवाते हैं बजरंग पूनियाँ ने सिर पर चोट के बावजूद पट्टी पहनकर पदक जीता और यह वाक़ई बहुत बहादुरी का कार्य है जिसे में सच्चे मन से स्वीकार करता हूँ । उनके फ़ोटो सोशल मिडिया पर वायरस हुए ग़ज़ब की बधाईयॉं मिली । दर्द में खेल की उपलब्धि को लोगों ने बहुत प्यार के साथ सराहा
और दूसरी तरफ़ विनेश फोगाट , उनको पीरियड क्रेम्प आने शुरू हो गए उसका दर्द बहुत असहनीय होता है और विनेश ने पीरियड समय पर न आए उसके लिए टेबलेट लेकर मैच खेला लेकिन उस दर्द के बारे सोचने व लिखने के लिए न कलम उठी न उस बहादुरी पर किसी को गर्व हुआ बल्कि किसी ने उसको लिखना भी सही नहीं समझा ।
अब इस पर विशेषता राय जाननी ज़रूरी है तो उसे भी पढ़ें कि उसने क्या कहा – विनेश फोगाट ने कहा, ”मुझे नहीं पता कि मैं रेपचेज का मौका मिलने पर अपने आपको भाग्यशाली मानूं या अनलकी मानूं कि टूर्नामेंट से ठीक पहले मेरे पीरीयड्स हो गए, जब मैं अपना वेट (कम खाना और पानी) कम कर रही थी।
उन्होंने आगे कहा, ”कभी-कभी लगता है, लड़का होती तो अच्छा होता। मैंने पहली बार पीरीयड्स रोकने वाली गोलियां खाईं। लेकिन ये दुबई में हो गए थे और मुझे लगा कि पिछले 10 महीनें में जो मेहनत की है वो सब बेकार चली गई।”
विनेश ने आगे कहा, ”मैंने मैट पर पूरी कोशिश की, सब कुछ झोंक दिया। लेकिन कई बार शरीर हार मान लेती है। यह सभी महिला एथलीट्स के साथ होता है। कोई-कोई बोलता है, कोई झेल जाता है।
इसमें यह बात भी ज़रूरी है कि स्वयं विनेश , कोच , परिवार को पिरियड्स का ध्यान किसी का नहीं रहा अब यहॉं पर आता है विषय ध्यान कैसे रहे तो पीरियड चार्ट बहुत ज़रूरी है क्योंकि बग़ैर इसके लड़की व परिवार दोनों को बराबर रूप से यह याद रखना , इसकी अनियमितता का पता नहीं चलता तथा अगर एकेडमी में भी सभी लडकीयों का लगा है तो कोच व मेंटल को भी ध्यान रहेगा ।
इस पिरियड विषय को देश के कुछ गंभीर केस व अन्तराष्ट्रीय स्टडी के साथ भी जाने तो बहुत बेहतर रहेगा तो चलिए जानते हैं
केस- 1 – टॉक्जिक शॉक सिंड्रोम
वर्ष 2019 में अहमदनगर की 28 वर्षीय महिला एक ही कपड़े को बार-बार पीरियड्स में इस्तेमाल कर रही थी। पुणे के रूबी हॉल क्लिनिक में भर्ती कराने पर पता चला कि उन्हें टॉक्जिक शॉक सिंड्रोम (टीएसएस) हो गया, जो बैक्टीरिया के इन्फेक्शन से होता है। सेप्सिस और जरूरी अंगों के नाकाम होने से आखिर में मौत हो गई।
केस- 2 -यूनिफार्म पर लगे खून के दब्बे
तमिलनाडु में 12 साल की लड़की ने खुदकुशी कर ली थी। वजह केवल इतनी थी कि पीरियड्स के चलते यूनिफार्म पर लगे खून के दब्बे को लेकर टीचर ने उसे डांटा था। पूरी क्लास के सामने डांट पड़ने के बाद बच्ची डिप्रेशन में आ गई। स्कूल से निकलने के बाद ही उसने बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी।
केस-3 – पहली बार पीरियड
दिल्ली के बुराड़ी इलाके में पांचवीं कक्षा में पढ़ रही मासूम ने खुद को कमरे में बंद कर दिया। इसके बाद चुन्नी का फंदा बनाकर पंखे से लटककर खुदकुशी कर ली। परिवार वाले जब बच्ची को फंदे से उतारकर अस्पताल ले गए, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। इस बारे में बच्ची की बड़ी बहन से जानकारी मिली कि दो दिन पहले उसे पहली बार पीरियड आया था। इससे काफी तनाव में थी। बार-बार समझाने पर भी परेशानी कम नहीं हुई।
केस- 4- दम घुटने से मौत
नेपाल में पीरियड की वजह से बिना खिड़की वाली झोपड़ी में रह रही 21 साल की महिला की दम घुटने से मौत हो गई थी। जब महिला के देर तक न उठने पर उसकी सास झोपड़ी में गई, तो वह मृत पड़ी मिली। महिला को अछूत मानते हुए अलग थलग रहने की इस प्रथा पर रोक लगा दी गई।
ये वो केस हैं जिसमें हर प्रकार का केस हज़ारों लडकीयों के केस की कहानी ब्यां कर रहा है । वॉटर एड की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनियाभर में 8 लाख के करीब महिलाओं की मृत्यु पीरियड्स के दौरान होने वाले संक्रमण से होती है। पीरियड्स एक ऐसा सब्जेक्ट बना हुआ है, जिस पर आज भी लोग खुलकर बात करने से कतराते हैं। जागरूकता की कमी के चलते महिलाओं को इन्फेक्शन के अलावा कई गंभीर बीमारियों का भी खतरा रहता है।
हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि पिरियड विषय पर सामान्य तौर पर बात होनी शुरू हो और पीरियड चार्ट हर घर की दीवार पर लगना शुरू हो जाए क्योंकि दर्द का कोई जेंडर नहीं होता , मर्द को भी दर्द होता है और महिला को यह दर्द हर महीने कई दिन तक होता है । Selfie With Daughter
लेखक – सुनील जागलान (फ़ाऊंडर – सेल्फी विद डॉटर अभियान एवं फाऊंडेशन)
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